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लातिन अमेरिकी कहानी : एक आदमी, दो औरतें

https://youtu.be/dyvqW1ms0O8

वो जो तुझको,मुझको जोड़ता था

Intro, एक रोज कोंचा दिआज किसी दुखी और उदास प्रेतात्मा की तरह उनके जीवन में आ खड़ी हुई। तोमास की बीवी एन्तोनिया तो जैसे उसे मार ही डालती, लेकिन धीरे,धीरे उनके बीच एक जाल फैलने लगा और …

आधुनिक प्रगति के ऐतिहासिक तामझाम से पहले, जिस किसी के पास भी थोड़ी बहुत बचत थी, उसे जमीन में गाड़ दिया जाता था। अपने खजाने को सुरक्षित रखने का एकमात्र यही तरीका उन्हें आता था।

यह तो बहुत बाद की बात है जब लोगों ने बैंकों पर भरोसा करना सीखा। एक बार जब चौड़े रास्ते बन गए और लोगों के लिए बसों द्वारा एक कस्बे से दूसरे कस्बे तक जाना आसान हो गया, लोगों ने अपने सोने और चांदी के सिक्कों को रंगीन कागज के टुकड़ों में बदल लिया और उन्हें मजबूत संदूकों में बंद कर दिया, जैसे वह बहुत बड़ा खजाना हो। तोमास वर्गास लोगों की इस मासूमियत पर हंसता था, क्योंकि उसे बैंक की व्यवस्था पर कतई भरोसा नहीं था। वक्त ने उसे सही ठहराया और तीस साल सत्ता में रहने के बाद जब एल बेनेफैक्टर की सरकार गिरी और रुपए के नाम पर इन रंगीन कागज के टुकड़ों की कोई कीमत नहीं रह गई तो बहुत से लोगों ने इन रंगीन कागजों को अपनी मासूमियत की त्रासद यादगार के रूप में दीवारों पर सजावट के लिए चिपकाना शुरू कर दिया था। कस्बे के सारे लोग जब इन रुपयों की निरर्थकता के बारे में चिट्ठियां लिख रहे थे और अखबार उनकी शिकायतों को दर्ज कर रहे थे, तोमास वर्गास की सोने की गिट्टियां सुरक्षित गड्ढों में सहेजी जा चुकी थीं। हालांकि उसकी इस खुशकिस्मती से उसकी कंजूसी और धोखाधड़ी में कोई फर्क नहीं पड़ा था। वह अब भी न लौटाने की ठानकर पैसे उधार लेता था। उसके बच्चे भूखे रहें या बीवी चीथड़े पहने, वह ठाठ से पनामा हैट पहनता और महंगे सिगार सुलगाता था। उसके बच्चों की फीस भी हमेशा बकाया रहती थी। उसके अपने छह जायज बच्चों की पढ़ाई मुफ्त हो रही थी, जिसका पूरा श्रेय कस्बे की शिक्षिका एनिस को जाता था। एनिस को  लगता था कि जब तक उसके दिमाग में बुद्धि और शरीर में ताकत है, कस्बे के किसी भी बच्चे को अनपढ़ नहीं रहना चाहिए।

वर्गास की लडऩे,भिडऩे, दारूबाजी और औरतबाजी करने की आदत पर उसकी बढ़ती उम्र ने कोई असर नहीं छोड़ा था। कस्बे के सबसे जांबाज मर्द होने का उसे गुरूर था। जब भी वह दारू के नशे में सराबोर होकर निकलता, अपनी छाती फुलाकर और गला फाड़कर अपनी जि़ंदगी में आई उन सभी औरतों के नाम लेता, जिनके साथ उसके संबंध रहे थे और उन सभी हराम की औलादों के नाम लेना भी वह नहीं भूलता, जिनकी रगों में उसका खून दौड़ रहा था। अगर उसके प्रलाप पर भरोसा किया जाता तो अब तक उसकी तीन सौ संतानें थीं क्योंकि हर बार के जुनून में वह अलग,अलग नाम उच्चारता। पुलिस उसे कई बार पकड़ कर ले गई थी और उसकी पीठ पर जमकर लातें जमाई थीं कि शायद उसमें कहीं कोई सुधार हो पर उस पर इन सबका कोई असर दिखाई नहीं देता था। हां, एक आदमी ऐसा जरूर था, जिसकी वह इज्जत करता था और वह था दुकानदार तुर्क रियाध हलाबी। इसलिए जब भी पड़ोसी वर्गास को पीकर धुत हुआ देखते या देखते कि वह अपने बीवी,बच्चों को पीट रहा है  तो वे झट रियाध हलाबी को खबर करने पहुंच जाते। रियाध भी सुनते ही, बगैर अपनी दुकान में ताला लगाए तेजी से वर्गास के अहाते में पहुंच जाता। उसके जबान खोलने से पहले ही वर्गास जैसे ही उसे देखता, शांत हो जाता। उस जैसे हब्शी को शर्मिंदा करने के लिए रियाध ही एकमात्र कारगर औजार था।

वर्गास की बीवी एन्तोनिया सिएरा उससे छब्बीस साल छोटी थी पर वह चालीस की उम्र में ही बूढ़ी हो चुकी थी। उसके मुंह में एकाध दांत ही बचा था। जवानी के दिनों में कभी खूबसूरत रह चुका उसका शरीर कड़ी मशक्कत, गर्भाधान और गर्भपातों से जर्जर हो चुका था, लेकिन कभी,कभी आज भी जब वह सिर ऊंचा कर और कमर लचकाकर चलती, उसकी चाल में पुरानी खूबसूरती का खुमार और बीती हुई खनक दिखाई दे जाती थी। एन्तोनिया के लिए दिन के चौबीस घंटे काफी नहीं थे। क्योंकि घर में बच्चों की और बाड़े में मुर्गियों की परवरिश के अलावा वह पुलिस वालों के लिए दोपहर का खाना पकाकर और स्कूल की धुलाई,पुंछाई कर अपने लिए भी वह कुछ पैसे कमा लेती थी। कई बार उसके शरीर पर स्याह,नीले निशान देखकर भी उससे कोई सवाल नहीं पूछता था, क्योंकि सब उसके पति की करतूतों से वाकिफ थे। सिर्फ रियाध हलाबी और स्कूल टीचर एनिस किसी न किसी बहाने से उसे कभी खाना, कभी कपड़े, बच्चों के लिए किताबें,कापियां और विटामिन की गोलियां पकड़ा देते थे।

एन्तोनिया ने अपने पति की बहुत,सी ज्यादतियां बर्दाश्त की थीं, जिसमें उसका अपनी रखैलों को गाहे,बगाहे घर में ले आना भी शामिल था।

…और एक दिन, किसी दुखी और उदास प्रेतात्मा की तरह, तोमास वर्गास के उस कस्बे में कोंचा दिआज सरकारी ट्रक पर सवार होकर अवतरित हुई थी। दरअसल, ट्रक के ड्राइवर को उस पर तरस आ गया, जब उसने उस लड़की को एक गठरी अपने कंधों पर और एक पेट पर लादे तपती सड़क पर नंगे पांव चलते देखा। सभी ट्रक शहर जाने से पहले रियाध के अड्डे पर रुकते थे, इसलिए रियाध हलाबी पहला आदमी था, जिससे उस लड़की का साबका पड़ा। जिस अंदाज में वह लड़की आकर उसके अड्डे पर खड़ी हुई और अपनी गठरी को उसने जमीन पर रखा, रियाध समझ गया कि वह राह से गुजरने वाले मुसाफिरों में से नहीं थी, बल्कि अपना बोरिया बिस्तर वहीं जमाने आई थी। वह कम उम्र की, ठिगनी,सांवली सी लड़की थी, जिसके सिर पर धूल और धूप से सने घुंघराले बालों की लटों ने अरसे से कंघी की शक्ल नहीं देखी थी। जैसा कि रियाध सभी मुसाफिरों के साथ करता था, उसने कोंचा को बैठने के लिए कुर्सी और पीने के लिए शरबत का गिलास थमा दिया और उस लड़की की जि़ंदगी के हादसों और बदनसीबी की कहानी सुनने के लिए तैयार हो गया। लड़की ने ज्यादा कुछ नहीं कहा, सिर्फ अपनी अंगुलियों से नाक सुड़की और दृष्टि नीचे फर्श पर जमा दी। फिर अपनी बदकिस्मती की दुहाई देते हुए उसके गालों पर आंसुओं की लकीरें बह निकलीं। आखिरकार उसे समझ आ गया कि वह तोमास वर्गास से मिलना चाहती है। उसने फौरन वर्गास को बुलाने के लिए किसी को भेज दिया। जैसे ही उसने वर्गास को आते देखा, उसने वर्गास की बांह पकड़कर उसे संभलने का मौका दिए बिना उसे लड़की के सामने धकेल दिया।

‘लड़की कहती है, उसके पेट में तुम्हारा बच्चा है’, रियाध ने धीमे सख्त स्वर में कहा जैसा वह अक्सर गुस्से में करता था।

‘इसका क्या सबूत है, तुर्क! मां कौन है, यह तो कोई भी बता सकता है, पर बाप के बारे में कोई पक्का नहीं कह सकता’, वर्गास ने अपनी अस्थिरता छुपाने की कोशिश में  कहा और खलनायकी अंदाज में आंख मार दी।

उसकी यह क्रिया वहां खड़े सब लोगों को नागवार गुजरी और इसके साथ ही लड़की ने अपनी रुलाई का सुर ऊंचा कर दिया। सुबकते हुए उसने कहा कि अगर उसे बाप का नाम पता नहीं होता तो वह कभी इतनी दूर चलकर नहीं आती।

रियाध ने वर्गास को कहा कि उसे अपने किए पर शर्म आनी चाहिए, वह लड़की के बाप की उम्र भी पार कर चुका है और अगर वह समझता है कि लोग हमेशा की तरह इस बार भी उसे माफ कर देंगे तो वह गलत समझ रहा है। लड़की ने और भी जोर से रोना शुरू कर दिया।

‘चलो, उठो, बच्ची, तुम मेरे घर में कुछ दिन ठहर जाओ, कम से कम जब तक बच्चा पैदा नहीं हो जाता।’  सब जानते थे, रियाध अब यही कहेगा।

कोंचा दिआज ने और जोर से सिसकियां भरते हुए घोषणा कर दी कि तोमास वर्गास के घर पर ही रहने के लिए वह इतनी दूर से चलकर आई है और सिर्फ वहीं रहेगी। दुकान पर बहती हवा भारी हो गई और माहौल में सन्नाटा छा गया, जिसे पंखे के चलने और लड़की के नाक सुड़कने की आवाज ही तोड़ सकती थी। उस सुबकती लड़की के सामने किसी की यह कहने की हिम्मत नहीं पड़ी कि यह बूढ़ा आदमी शादीशुदा है और उसके छह बच्चे हैं।

‘ठीक है, कोंचा, तुम यही चाहती हो तो यही होगा, तुम अभी इसी मिनट मेरे घर चलोगी’, आखिरकार वर्गास ने उस लड़की की पोटली उठाई और अपने साथ ले चला।

एन्तोनिया सिएरा घर लौटी तो उसके बिस्तर पर दूसरी औरत आराम फरमा रही थी। जि़ंदगी में पहली बार एन्तोनिया से सब्र नहीं हुआ। उसके गुरूर ने उसकी भावनाएं छिपाने से इनकार कर दिया। उसकी जिल्लत नीचे सड़क तक सुनी जा सकती थी, वह बाज़ार में गूंज रही थी और हर घर में घुसपैठ कर रही थी। वह चीख रही थी कि कोंचा दिआज एक नाली के कीड़े जैसी गलीज है और कि एन्तोनिया सिएरा उसका जीना इस कदर मुहाल कर देगी कि वह वापस लौट जाएगी और वह इस गलतफहमी में कतई न रहे कि उसके बच्चे इस चुड़ैल के साथ एक छत के नीचे रहने के लिए मान जाएंगे कि एन्तोनिया कोई बेवकूफजाहिल औरत नहीं है और उसका पति भी अब अपने रंग,ढंग सुधार ले, क्योंकि उसने उस राक्षस की सारी हैवानियत और धोखाधड़ी सिर्फ अपने गरीब, मासूम बच्चों की खातिर बर्दाश्त कर ली है पर अब वह दिखा देगी कि एन्तोनिया सिएरा है क्या। उसकी सनकी बड़बड़ाहट एक हफ्ते तक चली और बाद में उसकी चीखें बुदबुदाहट में बदल गईं। उसने अपनी खूबसूरती के आखिरी निशान भी खो दिए, यहां तक कि अपनी चाल भी वह भूल गई और चाबुक खाए कुत्ते की तरह घिसटती हुई चलने लगी।

उसके पड़ोसियों ने उसे समझाना चाहा कि दरअसल यह वर्गास की गलती है, कोंचा की नहीं पर एन्तोनिया अच्छी या बुरी, किसी भी तरह की सलाह सुनने को तैयार नहीं थी।

उस घर में जि़ंदगी कभी भी बहुत खुशहाल नहीं थी पर उसके आने से तो वह घर नरक से बदतर हो गया। एन्तोनिया अपने बच्चों के बिस्तर पर गुड़ीमुड़ी होकर दूसरी लड़की पर गालियां बरसाते हुए रात गुजार देती, जबकि दूसरी तरफ उसका मर्द लड़की को पुचकारने के बाद बांहों में लेकर खर्राटे भर रहा होता।

तड़के मुंहअंधेरे एन्तोनिया को उठना पड़ता। वह कॉफी बनाती, बच्चों का नाश्ता तैयार करती, उन्हें स्कूल भेजती, पुलिस वालों के लिए खाना पकाती, कपड़े धोती और इस्त्री करती। उसके भीतर की कड़वाहट छलक,छलक कर बाहर आती पर वह अपने रोजमर्रा के सारे काम एक मशीनी मुस्तैदी से करती चली जाती। उसने अपने पति के लिए खाना बनाना बंद कर दिया था, इसलिए उसके जाते ही कोंचा यह काम संभाल लेती ताकि रसोई में एन्तोनिया का सामना उसे न करना पड़े। एन्तोनिया की नफरत इतनी हिंसक दिखाई देती थी कि उसके पड़ोसियों को डर लगता था कि किसी दिन वह अपनी सौत की हत्या न कर दे इसलिए वे रियाध हलाबी और स्कूल टीचर एनिस के पास गए कि इससे पहले कि कोई दुर्घटना हो, वे कुछ हस्तक्षेप करें।

लेकिन चीजें इस तरह नहीं बदलीं। दो महीने में कोंचा का पेट तरबूज जितना हो गया। उसके पैर इतने सूज गए कि पैरों की नसें फटने को हो गईं और अकेलेपन से घबराकर उसका रोना चौबीस घंटे जारी रहता। तोमास वर्गास उसके आंसुओं को देख,देखकर थक गया और अब वह सिर्फ सोने के लिए घर आता। इसके साथ ही दोनों औरतों का बारी,बारी से खाना पकाना बंद हो गया। कोंचा ने उठना और कपड़े बदलना भी बंद कर दिया। उसमेंं अपने लिए एक कप कॉफी बनाने की भी ताकत नहीं थी और अब वह सारा दिन छत के पंखे की ओर टकटकी लगाए पड़ी रहती। एन्तोनिया दिन में तो इसे नज़रअंदाज करती पर रात होते,होते अपने किसी एक बच्चे के हाथ कोंचा के लिए गरम दूध का गिलास भिजवा देती ताकि कोई यह न कहे कि उसने किसी को अपनी छत के नीचे भूख से बिलखकर मर जाने दिया। यह दिनचर्या कुछ दिनों तक दोहराई गई। कुछ समय बाद कोंचा भी बाकी सब के साथ बैठकर खाने लगी। एन्तोनिया उसके सामने से ऐसे गुजरती जैसे उसकी उपस्थिति से अनजान हो। अब उसने कोंचा को पास आते देखकर कोसना और ताने देना लगभग बंद कर दिया था। जब उसने कोंचा को दिन पर दिन दुबलाते और हड्डियों का ढांचा रह जाते देखा — खेत के बीचोबीच खड़े एक काकभगोड़े  की तरह, जिसका तंबूरे जैसा पेट था और आंखों के नीचे गहरे काले धब्बे थे तो बड़े धीमे कदमों से  माया ममता ने उसके भीतर जगह बनानी शुरू कर दी थी। आखिर एन्तोनिया ने अपनी सारी मुर्गियों को एकएक कर काटकर उसे सूप और सालन बनाकर देना शुरू किया और जब मुर्गियों की तादाद घटते,घटते एक दिन खत्म हो गई तो उसने वह किया जो आज तक कभी अपने लिए भी नहीं किया था, वह रियाध हलाबी के पास मदद मांगने के लिए गई।

‘मैंने छह औलादों को जन्म दिया, कुछ तो पैदा होने से पहले ही मर गईं पर मैंने किसी को गर्भ के दौरान इतना बीमार नहीं देखा’, एन्तोनिया ने लजाते हुए रियाध को समझाया, ‘यह लड़की तो महज हड्डियों का ढांचा रह गई है । तुर्क, गले से नीचे एक निवाला जाते ही वह फौरन उसे उलट देती है।’ फिर वह कुछ संभलकर अपने को सफाई देते हुए बोली, ‘ऐसा नहीं है कि मुझे उसकी बड़ी परवाह है, उसकी यह बीमारी मेरा सरदर्द नहीं है पर तुर्क, जरा सोचो तो सही कि अगर वह मेरे घर पर मर गई तो मैं उसकी गरीब मां को क्या जवाब दूंगी?’

रियाध हलाबी ने बीमार लड़की को ट्रक में डाला और अस्पताल ले गया। एन्तोनिया भी उसके साथ,साथ गई। दोनों अस्पताल से दवाइयों की रंग,बिरंगी गोलियों और कोंचा के लिए एक नई पोशाक लेकर लौटे क्योंकि जो ड्रेस उसने पहन रखी थी, उसे तो वह अपनी कमर से नीचे खिसका ही नहीं सकती थी। कोंचा की तकलीफ ने एन्तोनिया को अपने पुराने दिनों के कुछ टुकड़े याद दिला दिए, जब वह खुद जवान थी और पहली बार गर्भवती हुई थी। वह भी ऐसे ही दौरों से गुजर रही थी। कोंचा नहीं चाहती थी कि कोंचा के आने वाले दिन भी उसके दिनों की तरह ही यातनादायक हों। एन्तोनिया के प्रति उसके मन में अब नाराजगी तो दूर, एक भीगी सी रहस्यात्मक संवेदना पनपने लगी थी। धीरे,धीरे वह उसे अपनी उस बेटी की तरह देखने लगी थी, जिसने अपनी जवानी के जुनून में कोई गलत कदम उठा लिया था और हर सूरत में अब उसे सुधारना उसकी मां की जिम्मेदारी थी। लड़की को अपने शरीर में अप्रत्याशित बदलाव आए देखकर घबराहट होने लगती थी। जहां तहां पसरती सूजन, बार,बार पेशाब के लिए उठना, बत्तख की तरह डगमगाते कदम भरना, अनियंत्रित उबकाइयां और इन सबसे ऊपर मर जाने की अदम्य इच्छा। किसी,किसी दिन तो वह सुबह के वक्त इतनी बीमार होती कि बिस्तर से उठ ही नहीं पाती, तब एन्तोनिया बारी,बारी से उसकी देखरेख करने के लिए अपने बच्चों का नम्बर लगा देती और अपना दिनभर का काम जल्दी,जल्दी निबटाकर कोंचा की देखभाल के लिए दोपहर को ही वापस लौट आती। किसी दिन ऐसा भी होता कि कोंचा बड़ी चुस्त और तरोताजा उठती, तब एन्तोनिया जब सारे दिन अपना काम कर थकी टूटी लौटती तो उसे घर साफ,सुथरा और खाना मेज पर तैयार मिलता। एन्तोनिया के आते ही कोंचा उसे गरम,गरम कॉफी का एक कप बनाकर देती और उसकी बगल में खड़े होकर वफादार जानवरों सी नमी आंखों में लिए उसके कॉफी पीने का इंतजार करती।

बच्चा शहर के अस्पताल में ही पैदा हुआ क्योंकि उसने सीधे रास्ते से इस दुनिया में आने से इनकार कर दिया था। उन्हें बच्चे को बाहर निकालने के लिए कोंचा दिआज के पेट  में चीरा लगाना पड़ा। एन्तोनिया उसकी देखभाल करने के लिए एक हफ्ता अस्पताल में रही। अपने बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उसने एनिस टीचर के जिम्मे डाल दी। दोनों औरतें हलाबी की मालगाड़ीनुमा ट्रक में वापस आईं। एग्वा सैन्ता के सब लोग उनका स्वागत करने आए। जब एन्तोनिया ने नए नकोर बच्चे को गोद में लेकर एक दादी की सी ठसक से बच्चे का मुंह सबको दिखाया और तुर्क के प्रति एहसान जताते हुए बताया कि बच्चे का नाम रियाध वर्गास दिआज रखा जाएगा तो कोंचा दिआज का चेहरा भी खिल उठा। यह सच भी था क्योंकि तुर्क की मदद के बिना कोंंचा के लिए मातृत्व का ओहदा पाना असंभव था। अस्पताल के सारे बिल भी रियाध ने भरे थे। तोमास ने तो खर्च की बात सुनते ही शाश्वत शराबी का ढोंग करते हुए अपने गड़े हुए सोने को निकालने से साफ इनकार कर दिया था।

अभी दो हफ्ते भी नहीं बीते थे और कोंचा के पेट के टांके अभी सूखे भी नहीं थे कि तोमास वर्गास ने कोंचा दिआज को वापस अपने अड्डे पर लौट जाने को कहा। यह सुनना था कि एन्तोनिया अपने कूल्हों पर हथेलियां धरे मुस्तैदी से सामने आई। बूढ़े खूसट का रास्ता रोकने की मजबूती जि़ंदगी में पहली बार उसमें दिखाई दे रही थी। तोमास ने हमेशा की तरह एन्तोनिया की धुनाई करने के लिए अपनी बेल्ट को चाबुक की तरह हवा में फटकारा पर एन्तोनिया जिस तरह खूंखार निगाहों से उसकी ओर आगे बढ़ी, तोमास के कदम हैरत से पीछे हट गए और उसका चाबुक भी बीच रास्ते ही ढीला पड़ गया। उसके पीछे हटते ही एन्तोनिया के लिए यह समझना आसान हो गया कि कौन ज्यादा ताकतवर था। इस बीच कोंचा दिआज ने भी बच्चे को कोने में लिटाया और मिट्टी का एक भारी गुलदस्ता तोमास के सिर पर फोडऩे के इरादे से दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठा लिया। वर्गास ने समझ लिया कि अब उसकी दाल नहीं गलने वाली। वह दोनों औरतों को कोसता और गालियां देता, घर से बाहर निकल गया। पूरे शहर को इस घटना के बारे में पता चल गया। तोमास ने खुद ही कोठेवाली लड़कियों को भी इसके बारे में बताया और वहां से बात हवा की तरह हर ओर फैल गई।

उसके बाद चीजें तेजी से बदलीं। कोंचा दिआज की सेहत दिन पर दिन सुधरने लगी। जब एन्तोनिया काम पर जाती तो कोंचा सब बच्चों की, घर और बगीचे की देखभाल करती। तोमास वर्गास चुपचाप मिमियाता हुआ घर लौट आया। वह अब सारी कसर बच्चों को लताड़कर पूरी करता और दारू के अड्डे पर जाकर भाषण झाड़ता कि ढोर,डंगरों की तरह औरतें भी सिर्फ लाठी की भाषा समझती हैं, लेकिन घर लौटकर अपनी औरतों पर वह उस भाषा का इस्तेमाल नहीं करता। जब वह शराब के नशे में धुत रहता, बीच मैदान में खड़े होकर ऊंचे सुर में, चारों दिशाओं में इस कदर अपनी बीवियों और रखैलों के मजे बखानता कि इसके बाद कई इतवारों को पादरी को चरित्रहीनता और भ्रष्टाचार का खंडन करने वाले प्रवचन दोहराने पड़ते और एक पत्नी के साथ सुखी गृहस्थी बसाने के सारे आदर्श ईसाई मूल्य नालियों में लोटते दिखाई देते।

एग्वा सैन्टा के लोग बेहद सहनशील थे। वे ऐसे आदमी को बर्दाश्त कर सकते थे, जो सुस्त था और हमेशा किसी न किसी के लिए परेशानी खड़ी कर देता था, जो कभी उधार लिए पैसे वापस नहीं देता था और अपने परिवार में मारपीट करता रहता था। पर जुए में ली गई उधारी वहां जायज नहीं थी। मुर्गों की लड़ाई हो या ताश का खेल, टिकटों को अंगुलियों के बीच वे मोड़कर रखते और उनको सबके बीच दिखाते। कभी ट्रकों के ड्राइवर दो चार हाथ तीन पत्ती के खेलने के लिए रुकते और अपनी नकद रकम कभी न दिखाते हुए भी जाते समय वे पाई,पाई का हिसाब साफ करने के बाद ही वहां से रवाना होते। शनिवार को सैन्टा मारिया जेल के गार्ड कोठों पर आते और हफ्ते भर की तनखा दारू के अड्डे पर जुए में उड़ाकर चले जाते। कैदियों से भी ज्यादा खूंखार उनके ये गार्ड भी अंटी में पैसा न होने पर कभी खेलने की जुर्रत नहीं करते। जुए में ईमानदार होने के नियम को किसी ने अब तक तोड़ा नहीं था।

तोमास वर्गास ने कभी जुआ नहीं खेला पर जुए में लोगों को हारते,जीतते हुए घंटों देखते रहना उसका प्रिय शगल था। वह खुद कभी लॉटरी की एक टिकट नहीं खरीदता पर लॉटरी में जीतने वालों के नामों की घोषणा सुने बगैर वह रेडियो के सामने से हटता नहीं था। पैसे को लेकर उसकी कंजूसी ने उसे अब तक जुआ खेलने से रोके रखा था। पर तोमास के खिलाफ एन्तोनिया सिएरा और कोंचा दिआज के फौलादी गठबंधन ने तोमास की मर्दानगी को स्थगित कर दिया था और तोमास एकाएक जुआ खेलने लग गया। पहले पहल तो उसने छोटी,मोटी चालें ही खेलीं और छोटे,मोटे जुआरी ही उसके साथ खेलने के लिए आ बैठे। तोमास अपनी औरतों के बारे में खुशकिस्मत भले ही न रहा हो, ताश के पत्ते उसके हक में सीधे ही पड़ते थे। आखिर आसानी से पैसा बनाने के कीड़े ने उसे भी काट लिया और वह जांबाज तरीके से तगड़ी बाजियां भी खेलने लगा। एक ही झटके में अमीर बनने के ख्वाब से वह बौखला गया। उसे लगा कि अपनी पिटी हुई इज्जत को वापस पाने  का यही एक तरीका है। अब वह बड़े जोखिम उठाने लगा। जल्दी ही उसके ईद,गिर्द बड़े जुआरी बैठने लगे। बाकी के लोग उसके चारों ओर घेरा बनाकर खड़े हो जाते। जैसा कि पुराना रिवाज था, तोमास वर्गास अपने पैसे मेज पर फैलाकर नहीं बैठता, पर हारने पर वह खेल के अंत में चुका देता।

घर पर स्थितियां बिगड़ती गईं। कोंचा को भी घर से बाहर काम करने जाना पड़ता। बच्चे अकेले घर पर रहते और स्कूल टीचर एनिस उन्हें आकर खाना खिला देती कि कहीं वे शहर जाकर भीख न मांगने लगें।

तोमास वर्गास की असली परेशानी शुरू हुई जब उसने एक लेफ्टिनेंट की चुनौती को मंजूर किया और उसके साथ छह घंटे खेलने के बाद दो सौ पेसो जीत गया। लेफ्टिनेंट बड़ी,बड़ी मूंछों वाला एक मोटा, सांवला,सा आदमी था, जो अपनी जैकेट के बटन खुले रखता था ताकि लड़कियां उसकी घने बालों वाली छाती और उस पर झूलती सोने की बेशुमार चेनों की तारीफ करें। एग्वा सैन्टा में कोई उसे पसंद नहीं करता था, क्योंकि वह अपनी सुविधा और सनक के अनुसार कानून गढ़ता था। सैन्टा मारिया जेल में वह इस बात का खास खयाल रखता कि बगैर तगड़ी मार खाए कोई भी जेल से बाहर न निकले। लोग कानून से डरने लगे थे।

दो सौ पेसो हारने से वह बौखला गया था, लेकिन उसने बिना कोई चूं चपड़ किए दो सौ पेसो निकालकर दे दिए, क्योंकि अपनी सारी सत्ता के अधिकार और ताकत के बावजूद, हारी हुई रकम अदा किए बिना वह मेज छोड़कर जा नहीं सकता था।

तोमास वर्गास दो दिन अपनी जीत के नशे में घूमता रहा। आखिर लेफ्टिनेंट ने उसे ललकारा कि वह अगले शनिवार को एक और तगड़ी बाजी खेलकर उससे बदला लेगा और इस बार उसने एक हजार पेसो की शर्त लगाई। उसने ऐसी जोरदार आवाज में घोषणा की कि वर्गास की मना करने की हिम्मत नहीं हुई।

शनिवार की दोपहर को अड्डा ठसाठस भरा था। भीड़ और उमस इतनी थी कि लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल हो रहा था। आखिर जुए की मेज को उठाकर बाहर लाया गया, ताकि सभी खेल देखने का मजा ले  सकें। एग्वा सैन्टा में पहली बार इतनी बड़ी रकम की बाजी लग रही थी। रियाध हलाबी को गेम का रैफरी नियुक्त किया गया। उसने सबसे पहले भीड़ को दो कदम पीछे हटने को कहा ताकि किसी तरह की कोई बेईमानी न हो, फिर लेफ्टिनेंट और पुलिसवालों को अपने हथियार जेल में छोड़ आने को कहा।

‘इससे पहले कि खेल शुरू हो, दोनों खिलाड़ी अपनी रकम मेज पर रखें’, रैफरी ने कहा।

‘मेरी जबान की कीमत है, तुर्क!’ लेफ्टिनेंट ने कहा।

‘मेरी भी!’ तोमास ने जोड़ा।

‘अगर तुम हार गए तो कैसे चुकाओगे?’ रियाध हलाबी ने लेफ्टिनेंट से पूछा।

‘शहर में मेरा एक घर है, अगर मैं हारा तो कल से वह घर वर्गास का होगा’, लेफ्टिनेंट बोला।

‘ठीक! और तुम?’

‘मैं अपना गड़ा हुआ सोना दे दूंगा।’

पिछले कई सालों में एग्वा सैन्टा में घटने वाली यह सबसे हैरतअंगेज घटना थी। बूढ़ों से लेकर छोटे बच्चों तक सब इसे देखने के लिए सड़कों पर इकट्ठा हो गए, नहीं आईं तो बस एन्तोनिया और कोंचा।

लेफ्टिनेंट और तोमास वर्गास — दोनों में से किसी के प्रति वहां के लोगों में कोई सहानुभूति का भाव नहीं था, इसलिए किसी को फर्क नहीं पड़ता था कि कौन जीतेगा, मनोरंजन का सबब यह था कि दोनों खिलाडिय़ों में से किसके दुखी होने का ज्यादा अनुमान लगाया जा सकता है। तोमास वर्गास के साथ ताश के पत्तों में उसकी खुशकिस्मत होने की फेहरिस्त थी और लेफ्टिनेंट ठंडे दिमाग का होने के साथ,साथ सख्त और अनुशासित व्यक्ति था।

शाम के सात बजे नियत समय पर और निश्चित की गई शर्तों के अनुसार खेल समाप्त हुआ और रियाध हलाबी ने लेफ्टिनेंट को विजयी घोषित किया। अपनी जीत में भी लेफ्टिनेंट ने वही संयम बरता जो पिछले हफ्ते अपनी हार में बरता था — न अकड़ी हुई मुस्कान, न व्यंग्यात्मक शब्द। वह महज दांतों को छोटी अंगुली के नाखून से कुरेदता अपनी कुर्सी पर बैठा रहा।

‘चलो वर्गास, अब उठो, तुम्हारा सोने का गड़ा हुआ खजाना खोदने का वक्त आ गया है!’ दर्शकों का उत्साह थमने के बाद उसने कहा।

तोमास वर्गास की त्वचा का रंग बुझी हुई राख,सा काला पड़ गया था, उसकी कमीज पसीने से तर,ब,तर थी और वह सांस लेने के लिए हांफ रहा था, जैसे हवा उसके गले में अटक गई हो। दो बार उसने खड़े होने की कोशिश की पर दोनों बार उसके घुटने लडख़ड़ाने लगे। रियाध हलाबी को उसे सहारा देना पड़ा। आखिरकार मुख्य रास्ते की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए उसने ताकत जुटाई। तोमास वर्गास के पीछे,पीछे लेफ्टिनेंट, पुलिस वाले, तुर्क, स्कूल टीचर एनिस और उनके पीछे पूरा शहर शोर,शराबे के साथ एक जुलूस की शक्ल में चलने लगा। वे लोग कुछ मील चले होंगे, जब वर्गास दाहिनी ओर सब्जियों की मेड़ की ओर मुड़ गया, जिसने एग्वा सैन्टा को घेर रखा था। आगे रास्ता झाडिय़ों से घिरा था पर कुछ हिचकिचाहट के बाद उसने विशालकाय पेड़ों और ऊंचे देवदारों के बीच से रास्ता निकाल ही लिया। आखिरकार वह एक घाटी के किनारे पहुंचा, जो उस जंगल के फैलाव में मुश्किल से ही दिखाई देती थी। लोगों की पूरी जमात वहां ठहर गई। सिर्फ वर्गास और लेफ्टिनेंट ही आगे बढ़े। सूरज डूबने को था, फिर भी हवा में उमस और गर्मी का दबाव था। तोमास वर्गास ने सबको वहीं रुकने का संकेत दिया। वह अपने घुटनों पर टिक कर हाथों और पैरों के बल रेंगता हुआ बड़े,बड़े पत्तों के नीचे से चला गया। एक लंबा अंतराल गुजरा और अचानक उसकी चीख भरी दहाड़ सुनाई दी। लेफ्टिनेंट झाड़ झंखाड़ के बीच कूदा और तोमास को एडिय़ों से खींचते हुए बाहर ला पटका।

‘मामला क्या है?

‘वहां नहीं है, वहां कुछ नहीं है!

‘वहां कुछ नहीं है? मतलब क्या है तुम्हारा?

‘कसम से लेफ्टिनेंट, मुझे कुछ नहीं मालूम! किसी ने डाका डाला है, किसी ने मेरा सारा खजाना लूट लिया है! और वह एक विधवा की तरह रोने लगा। लेफ्टिनेंट के जूतों की ठोकरों ने उसे लगभग अद्र्धमूच्र्छित हालत में पहुंचा दिया था।

‘सूअर के पिल्ले! मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं! तेरी मां की कब्र से भी मैं अपने पैसे लेकर रहूंगा!

इससे पहले कि लेफ्टिनेंट उसे मार,मार कर उसका भुरता बना देता, रियाध हलाबी ने घाटी की ओर लुढ़क कर वर्गास को लेफ्टिनेंट के चंगुल से छुड़ा लिया। उसने लेफ्टिनेंट को शांत किया। उसे समझाया कि मार,पीट से कोई हल नहीं निकलने वाला, फिर उसे घाटी से ऊपर आने में मदद की। तोमास वर्गास नीमबेहोशी की हालत में डगमगा रहा था और भय से कांप रहा था। रोते,रोते वह इस कदर बिलबिला रहा था कि तुर्क को उसे घर तक पहुंचाना पड़ा।

एन्तोनिया सिएरा और कोंचा दिआज आंगन में मूढ़े डाले कॉफी सुड़कते हुए अंधेरे को घिरते हुए देख रही थीं। पूरी घटना जान लेने के बाद भी संत्रस्त होने का कोई चिह्न उनके चेहरे पर नहीं था। बल्कि विचलित हुए बिना वे उसी तरह कॉफी सुड़कती रहीं।

तोमास वर्गास को एक हफ्ते तेज बुखार रहा। बुखार के दौरान वह सोने के ढेलों और ताश के पत्तों के बारे में बड़बड़ाता रहा। बजाय इसके कि वह सोने का खजाना लुट जाने के गम में जान से हाथ धो बैठता, उसका स्वास्थ्य सुधरने लगा। जब वह चल पाने के लायक हुआ तो कुछ दिन घर से बाहर नहीं निकला पर अंतत: उसके व्यसन ने उसके विवेक पर काबू पा लिया और हिलते लडख़ड़ाते हाथों से उसने पनामा हैट निकाली और शराबखाने की ओर चल पड़ा।

वह उस रात नहीं लौटा। दो दिन बाद किसी के साथ यह खबर आई कि उसका क्षत,विक्षत शरीर उसी घाटी में पाया गया है, जहां उसका खजाना गड़ा था। किसी ने गंडासे से उसके टुकड़े कर डाले थे। सब जानते थे कि देर,सबेर उसका यही अंत होने वाला है।

एन्तोनिया सिएरा और कोंचा दिआज ने बिना किसी शोक प्रदर्शन और बिना किसी शोभायात्रा के उसे दफना दिया। रियाध हलाबी और स्कूल टीचर एनिस भी सिर्फ उनका साथ देने के लिए उनके साथ थे, उस आदमी को श्रद्धांजलि देने के लिए नहीं, जिसकी उन्होंने कभी इज्जत नहीं की थी।

उसके बाद दोनों औरतें बच्चों को बड़ा करने में और जि़ंदगी के दूसरे उतार,चढ़ावों में एक,दूसरे की मदद करते हुए खुशी से साथ,साथ रहती रहीं। तोमास वर्गास को दफनाए अभी ज्यादा दिन नहीं हुए थे कि उन्होंने मुर्गियां, खरगोश और सूअर खरीदे। वे बस में चढ़कर शहर गईं और सभी बच्चों के लिए नए कपड़े खरीद कर लाईं। उसी साल उन्होंने घर की मरम्मत करवाई, उसमें दो कमरे और जोड़े, पूरे घर को नीले रंग से पेंट किया और एक गैस स्टोव भी लगवाया और उसके बाद खाना पकाने और टिफिन भिजवाने का व्यवसाय शुरू कर दिया। हर दोपहर वे अपने बच्चों को जेल, स्कूल और पोस्ट ऑफिस में खाना देने के लिए भेजतीं। तब भी अगर खाना बच जाता तो उसे रियाध हलाबी के लिए ढक कर रख दिया जाता कि वह ट्रक ड्राइवरों को खिला दे।

…और इस तरह गरीबी के बीच से उन दोनों ने अपना रास्ता निकाला और तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ चलीं।

लेखिका, ईसाबेल अलेंदे

लेखिका परिचय :स्वतंत्र पत्रकार, विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता व सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली स्पेनिश लेखिका। प्रमुख कृतियां — द हाउस ऑफ द स्प्रिट, सिटी ऑफ द बीट्स, इवालुना, द आइस लैंड बिनीथ द सी।

अनुवाद : उपमा ऋचा

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