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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना: जन्मदिन पर वो कविता जिनमें जीवन है, उम्मीद है…

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हिन्दी साहित्य जगत के किसी हस्ताक्षर से कम नहीं है। उन्होंने कठोरता से व्यवस्था में व्याप्त बुराइयों पर आक्रमण किया। 15 सितंबर 1927 को बस्ती (उ.प्र) में जन्मे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने एक छोटे से कस्बे से अपना जीवन शुरू किया लेकिन जिन रचनात्मक उचाईयों को उन्होंने छुआ, वह अपने आप में ऐतिहासिक है। उनके जन्मदिन पर पेश है वो कविता जिनमें जीवन है, उम्मीद है…

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गयी है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकान्त नहीं
न बाहर, न भीतर।

हर चीज़ का आकार घट गया है,
पेड़ इतने छोटे हो गये हैं
कि मैं उनके शीश पर हाथ रख
आशीष दे सकता हूँ,
आकाश छाती से टकराता है,
मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ।
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे महसूस हुआ है
कि हर बात का एक मतलब होता है,
यहाँ तक कि घास के हिलने का भी,
हवा का खिड़की से आने का,
और धूप का दीवार पर
चढ़कर चले जाने का।

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे लगा है
कि हम असमर्थताओं से नहीं
सम्भावनाओं से घिरे हैं,
हर दिवार में द्वार बन सकता है
और हर द्वार से पूरा का पूरा
पहाड़ गुज़र सकता है।
शक्ति अगर सीमित है
तो हर चीज़ अशक्त भी है,
भुजाएँ अगर छोटी हैं,
तो सागर भी सिमटा हुआ है,
सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है,
जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
वह नियति की नहीं मेरी है।

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