आजकल चारों ओर घना अंधियारा है। हर ओर से मन को विषाद से भरने वाली सूचनाएं आ रही हैं। दुख अपार होता जा रहा है। हम विवशता के भंवर में धंसते जा रहे हैं। ऐसे में हमें चाहिए उजाला, जो हमारे मन को उम्मीद से भर दे। हमें चाहिए रोशनी, जो हमारे अंतस में आशा के फूल खिला दे। तो पढ़िए रोशनी की उम्मीद जगाती यह कविता-
जब घना अंधियारा हो
और बेइंतहा अकेलापन लगे आपको
जब बारिश रुकने का नाम न ले
और आप पहुंच न पाओ घर,
जब लगे, गंवा दिया है सब कुछ
और आप बस पलायन करना चाहो,
तो जान लो, कभी तो रुकेगी बारिश
बस, सूरज का करो इंतजार।
जब दर्द बन जाए परिवार,
जब आपको न मिले कोई दोस्त,
जब आप सिर्फ चीखना चाहो
लेकिन मुंह से न निकले आवाज,
जब सारी गलती हो आपकी,
और आपको लगे कि बहुत हुआ,
बस, सूरज का करो इंतजार।
धूप खिलेगी, होगी रोशनी।
तूफान तो हमेशा गुजर ही जाए।
हमेशा तो वह रहता नहीं।
बारिश थम ही जाती है, अच्छे मौसम को देती राह।
सबसे उज्ज्वल, सबसे सुखद दिन तो अभी आने हैं।
बस, सूरज का करो इंतजार।
धूप खिलेगी, होगी रोशनी।
जिन लोगों को है जरूरत आपकी,
जो अब भी करते हैं प्यार आपसे
वे जगमग कर सकते हैं अंतस आपका, जैसे करे धूप।
कभी अकेला मत समझो खुद को,
चाहे कुछ भी हो जाए।
सूरज का करो इंतजार।
बस, सूरज का करो इंतजार।
काले बादल तो उड़ ही जाते हैं।
मेरा पक्का वादा समझो।
आपके साथ हम सब भी कर रहे इंतजार।
बस, सूरज का करो इंतजार।
कवि-लिसा मार्क्स
अनुवाद: भुवेन्द्र त्यागी