राजा श्रेणिक भगवान बुद्ध के पास गए। देखा, उनके इर्दगिर्द भिक्षु बैठे हैं, जिनके चेहरे आनन्द से खिल रहे हैं। तभी उनकी निगाह एक ओर बैठे राजकुमारों पर गई, जिनके चेहरों पर उदासी छाई थी।
श्रेणिक का मन दुविधा में पड़ गया। कितनी कठोर चर्या थी भिक्षुओं की, फिर भी आनंद से उनके चेहरे दीप्त। दूसरी ओर राजकुमारों को सारी सुविधाएं प्राप्त थीं, फिर भी हैरान। ऐसा क्यों? राजा को इसका उत्तर न मिला, तो उन्होंने भगवान बुद्ध से पूछा ।
बुद्ध ने कहा, ‘राजन, मेरे भिक्षुओं ने अपना स्वभाव ही ऐसा बना लिया है कि उन पर कैसी भी मुसीबत क्यों न आवे, उनकी मानसिक शान्ति भंग नहीं होती। वे हर हालत में खुश रहते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि वे यह नहीं देखते कि बीते दिनों में क्या हुआ। न वे यह भी देखते हैं कि भविष्य में क्या होगा। उनकी निगाह वर्तमान पर रहती है। आज जो कुछ जैसे रूप में है, उसे वे उसी रूप में देखते हैं। उनकी प्रसन्नता का यही रहस्य है।’